वीडियो जानकारी: 18.03.2017, शब्दयोग सत्संग, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग:<br /><br />श्रीभगवानुवाच-<br /><br />निर्मानमोहा जितसङ्गदोषाअध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।<br />इन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै-र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत् ॥५॥<br />भावार्थ:<br />जिनका मान और मोह नष्ट हो गया है, जिन्होंने आसक्ति रुपी<br />दोष को जीत लिया है, जिनकी परमात्मा के स्वरूप में नित्य स्थिति है<br />और जिनकी कामनाएँ पूर्ण रूप से नष्ट हो गई हैं,<br />वे सुख-दुःख नामक द्वन्द्वों से विमुक्त ज्ञानीजन<br />उस अविनाशी परम पद को प्राप्त होते हैं।<br />~ श्रीमद्भगवदगीता, अध्याय १५<br /><br />श्रीभगवानुवाच-<br /><br />न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः ।<br />यगत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥६॥<br />भावार्थ-<br />जिस परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य लौटकर संसार<br />में नहीं आते, उस स्वयं प्रकाश परम पद को न सूर्य<br />प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा और न अग्नि ही,<br />वही मेरा परम धाम है।<br />~ श्रीमद्भगवदगीता, अध्याय १५<br /><br />~ कौन सुख-दुःख के द्वन्द्वों से विमुक्त है?<br />~ किसका मान और मोह नष्ट हो गया है?<br />~ कौन आसक्ति रुपी दोष को जीत सकता है?<br />~ किसकी कामनाएँ पूर्ण रूप से नष्ट हो गई हैं?<br />~ परमात्मा के स्वरूप की नित्य स्थित क्या है?<br />~ अविनाशी परम पद क्या है?<br />~ क्या परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य लौटकर संसार में नहीं आते?<br />~ आसक्ति क्या है?<br />~ आसक्ति से मुक्ति कैसे मिलेगी?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~